गाड़ियों की ढुलाई में भारत ने अमेरिका के बाद बनाई धाक, पर्यावरण का दोस्त बना रेलवे!

अब कारें सिर्फ सड़कों पर नहीं दौड़ रही हैं, बल्कि तेज़ रफ्तार से ट्रेनों पर चढ़कर देशभर में घूम रही हैं। और इस क्रांति का नतीजा ये हुआ है कि भारत अब रेल के ज़रिए कार ढुलाई में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। अमेरिका के बाद अब भारत ने इस लिस्ट में चीन और जर्मनी जैसी बड़ी ताकतों को पीछे छोड़ते हुए दूसरा स्थान हासिल कर लिया है। सुनने में शायद अजीब लगे, लेकिन अब भारत में SUV से लेकर हैचबैक तक की गाड़ियां ट्रेन में लदकर हजारों किलोमीटर का सफर तय कर रही हैं – वो भी बिना ट्रैफिक और धक्कामुक्की के।

रेलवे से कार ट्रांसपोर्ट ने पकड़ी रफ्तार

बीते कुछ सालों में भारत में कार ट्रांसपोर्ट बाय रेलवे ने जबरदस्त बढ़त बनाई है। एक समय था जब सिर्फ ट्रक ही गाड़ियों की ढुलाई का सबसे भरोसेमंद जरिया माने जाते थे। लेकिन अब हालात तेजी से बदले हैं। साल 2013-14 में जहां केवल 1.5% कारें रेलवे से भेजी जाती थीं, वहीं 2024-25 में यह आंकड़ा सीधा 24.5% तक पहुंच गया है। यानी हर चार में से एक कार अब ट्रेनों से अपने गंतव्य तक जाती है।

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रेलवे से कार ट्रांसपोर्ट का चलन तेजी से इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि यह न सिर्फ ट्रकों की तुलना में सस्ता पड़ता है, बल्कि लंबी दूरी पर समय और ईंधन दोनों की बचत करता है। इसके अलावा पर्यावरण पर भी इसका असर कम पड़ता है। यही वजह है कि अब बड़ी कार कंपनियां Tata, Maruti, Hyundai और Kia जैसी ब्रांड्स भी रेलवे को प्राथमिकता देने लगी हैं।

50 लाख में से 12.5 लाख कारें गईं रेल से

वित्त वर्ष 2024-25 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में कुल 50.6 लाख कारों का निर्माण हुआ, जिनमें से लगभग 12.5 लाख कारों को रेलवे के माध्यम से देशभर में भेजा गया। यानी लगभग 25% गाड़ियों की ढुलाई अब पटरियों पर हो रही है। एक वरिष्ठ रेलवे अधिकारी के मुताबिक, “पिछले चार सालों में कार ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी 14.7% से बढ़कर करीब 24.5% हो गई है और आने वाले समय में इसमें और बढ़ोतरी की उम्मीद है।”

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अमेरिका के बाद भारत का नाम, चीन-जर्मनी पीछे

कार ट्रांसपोर्ट बाय ट्रेन के मामले में अब भारत दुनिया में दूसरे पायदान पर पहुंच गया है। अमेरिका इस लिस्ट में पहले स्थान पर बना हुआ है, जहां हर साल करीब 75 लाख कारें रेल से ट्रांसपोर्ट की जाती हैं। लेकिन भारत का नाम अब चीन और जर्मनी जैसे विकसित देशों से आगे आना निश्चित रूप से एक बड़ी उपलब्धि है।

इस बदलाव के पीछे रेलवे की रणनीति और तकनीकी बदलाव भी जिम्मेदार हैं। भारतीय रेलवे ने समय के साथ अपनी सुविधाओं में बदलाव करते हुए कार ट्रांसपोर्ट को कंपनियों के लिए बेहद आकर्षक बना दिया है। अब हर महीने औसतन 170 रैकों से गाड़ियां देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजी जाती हैं, जबकि 2013 में यह संख्या सिर्फ 10 थी।

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SUV भी अब ट्रेन से हो रही हैं रवाना

अब सिर्फ छोटी कारें ही नहीं, बल्कि बड़ी और भारी SUV गाड़ियां भी आराम से ट्रेनों में लाद दी जाती हैं। भारतीय रेलवे ने दो साल पहले अपने माल ढोने वाले वैगनों का डिजाइन इस तरह से बदला कि अब उनमें दोगुनी SUV लदी जा सकती हैं। पहले एक रैक में लगभग 135 SUV भेजी जा सकती थीं, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 270 हो गई है।

इस कदम से न सिर्फ कंपनियों को लागत में कमी का फायदा मिला है, बल्कि बड़े शहरों से दूर-दराज के इलाकों तक SUV पहुंचाना भी आसान हो गया है। गांवों-कस्बों में अब ऐसी गाड़ियां दिखने लगी हैं, जो पहले सिर्फ शहरों तक सीमित थीं।

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सड़क पर ट्रकों का राज टूटा, रेलवे का जलवा कायम

कार ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी बढ़ने से ट्रांसपोर्ट कंपनियों के लिए चुनौती ज़रूर बढ़ी है, लेकिन पर्यावरण और सड़क ट्रैफिक के लिहाज से यह कदम बेहद अहम साबित हो रहा है। खासकर 600 किलोमीटर से ज्यादा दूरी वाली रूट्स पर अब ट्रकों के बजाय ट्रेन को प्राथमिकता दी जा रही है। इससे ईंधन की खपत में भारी कमी आई है और गाड़ियों की डिलीवरी भी पहले से तेज़ हो गई है।

यह बदलाव इतना बड़ा है कि अब छोटे कस्बों और शहरों के डीलर भी अपने ऑर्डर रेलवे से मंगवाने लगे हैं। कंपनियों को भी अब भरोसा हो गया है कि car transport by railway in India एक स्मार्ट, किफायती और भरोसेमंद विकल्प है।

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अब पटरियों पर दौड़ेंगी सपनों की कारें

अब वो ज़माना नहीं रहा जब गाड़ी खरीदते ही यह सोचना पड़ता था कि ट्रक से आएगी, कब पहुंचेगी, किस हालत में पहुंचेगी। अब सपनों की गाड़ियां रेलवे से सफर तय कर रही हैं – बिना धूल, बिना खड़खड़ाहट, एकदम रॉयल स्टाइल में। भारत की car transport by railway वाली ये उपलब्धि न सिर्फ ऑटो इंडस्ट्री को नया रास्ता दिखा रही है, बल्कि देश के बुनियादी ढांचे को भी नई पहचान दे रही है।

अब बात बस इतनी सी है – चाहे SUV हो या sedan, अब गाड़ियां सड़कों से नहीं, सीधे पटरियों से आपके दरवाज़े तक आ रही हैं। भारत ने इस मामले में जो रफ्तार पकड़ी है, वो यकीनन गर्व करने वाली बात है।

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