अगर आप दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं और आपके पास BS6 कार या बाइक है, तो आने वाले कुछ दिनों में आपको एक बड़ी राहत या चिंता की खबर मिल सकती है। सुप्रीम कोर्ट 28 जुलाई को एक बेहद अहम याचिका पर सुनवाई करने जा रहा है, जो BS6 वाहन नियम और गाड़ियों की उम्र सीमा से जुड़ी है। इस सुनवाई का सीधा असर NCR में चल रही लाखों BS6 गाड़ियों पर पड़ेगा। अब सवाल उठता है कि क्या BS6 गाड़ियों को भी 10 और 15 साल के बाद कबाड़ घोषित कर दिया जाएगा, या फिर इन पर बैन हटाने की बात होगी?
BS6 गाड़ियों की उम्र सीमा पर उठे सवाल
फिलहाल दिल्ली और एनसीआर में डीज़ल गाड़ियों की उम्र 10 साल और पेट्रोल गाड़ियों की 15 साल तय की गई है। यह नियम सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले के आधार पर लागू है, लेकिन उस समय BS6 वाहन बाजार में नहीं थे। अब जब BS6 टेक्नोलॉजी वाली गाड़ियां आ चुकी हैं, तो गाड़ियों की उम्र सीमा को लेकर सवाल उठने लगे हैं। वाहन मालिकों और इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि BS6 गाड़ियाँ पहले के BS3 या BS4 वाहनों से कहीं ज्यादा पर्यावरण के अनुकूल हैं और इन्हें पुराने नियमों के तहत हटाना उचित नहीं है।
यही मुद्दा लेकर अब एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में पहुंची है जिसमें यह अपील की गई है कि BS6 वाहनों को उम्र सीमा से मुक्त किया जाए या कम से कम उनके लिए नियमों में बदलाव किया जाए। याचिका में ये भी तर्क दिया गया है कि BS6 वाहनों से प्रदूषण बहुत कम होता है और इन्हें चलने से प्रदूषण स्तर पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।
NCR में कार मालिकों की बढ़ती चिंता
दिल्ली-एनसीआर में करोड़ों लोग रोज़मर्रा के काम के लिए निजी गाड़ियों पर निर्भर हैं। खासतौर पर उन लोगों के लिए यह मामला और भी गंभीर हो जाता है, जिन्होंने पिछले कुछ सालों में ही लाखों रुपये खर्च कर BS6 वाहन खरीदे हैं। उन्हें डर है कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके खिलाफ आया, तो उनकी गाड़ियाँ तय समय के बाद जब्त या स्क्रैप कर दी जाएंगी।
इस नियम का सबसे बड़ा असर उन लोगों पर पड़ सकता है जो NCR के पास के इलाकों जैसे गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद और गुरुग्राम से रोजाना दिल्ली आते हैं। अगर BS6 गाड़ियों पर भी 10-15 साल का बैन लागू हो गया, तो लाखों परिवारों की जेब पर भारी असर पड़ेगा और ट्रैफिक व्यवस्था भी अस्त-व्यस्त हो सकती है।
BS6 वाहन और पर्यावरण का गणित
BS6 टेक्नोलॉजी को देश में 2020 में लागू किया गया था। इसका मकसद वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करना था। BS6 गाड़ियों में एग्जॉस्ट सिस्टम बेहतर होता है, जिससे पार्टिकुलेट मैटर और NOx जैसी हानिकारक गैसें बहुत कम निकलती हैं। इसके अलावा, कई BS6 गाड़ियों में एडवांस इंजन और ऑनबोर्ड डाइग्नोस्टिक सिस्टम भी होते हैं जो गाड़ी की सेहत और प्रदूषण दोनों पर नज़र रखते हैं।
इसी वजह से वाहन निर्माता कंपनियों और पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि BS6 गाड़ियों को कबाड़ घोषित करना वैज्ञानिक और व्यावहारिक दोनों ही नज़रिए से गलत है। अगर इन्हें चलने की अनुमति मिलती है, तो ना सिर्फ लोगों को राहत मिलेगी, बल्कि वाहन इंडस्ट्री की भी हालत सुधरेगी।
28 जुलाई की सुनवाई से जुड़ी उम्मीदें
अब सबकी निगाहें 28 जुलाई की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि NCR में BS6 वाहनों के लिए उम्र सीमा का नियम जारी रहेगा या इसमें कोई राहत मिलेगी। याचिका में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि कोर्ट को पुराने नियमों पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि आज की टेक्नोलॉजी और हालात बहुत बदल चुके हैं।
यदि कोर्ट यह मानता है कि BS6 गाड़ियों से पर्यावरण को गंभीर नुकसान नहीं हो रहा, तो हो सकता है कि इन पर लागू बैन में कुछ ढील दी जाए। वहीं अगर कोर्ट पुराने नियमों को ही लागू रखने का फैसला करता है, तो आने वाले वर्षों में लाखों वाहन मालिकों को अपनी गाड़ियाँ तय समय पर स्क्रैप करानी होंगी।
अब फैसला कोर्ट का, लेकिन चर्चा हर घर में
अब मामला कोर्ट में है, लेकिन इसका असर आम आदमी के घर तक पहुँच चुका है। चाय की दुकान से लेकर कॉलोनी के पार्क तक, हर जगह BS6 गाड़ियों पर बैन की चर्चा हो रही है। कोई कह रहा है कि कोर्ट समझदारी से काम लेगा, तो कोई डर में है कि कहीं उनका लाखों का इंवेस्टमेंट कबाड़ न बन जाए।
अब देखना होगा कि 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला सुनाता है। एक तरफ पर्यावरण की चिंता है और दूसरी तरफ करोड़ों लोगों की जेब और रोज़ाना की ज़िंदगी। फैसला जो भी हो, ये साफ है कि BS6 वाहन नियम अब एक राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन चुका है, और आने वाले समय में इसके असर दूर तक दिखाई देंगे।
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