आजकल जब सबकुछ मोबाइल ऐप्स पर चल रहा है, तो लोग सोचते हैं कि कंपनियां कुछ भी कर सकती हैं – पर हैदराबाद के एक आम युवक ने ऐसा झटका दिया कि बड़ी-बड़ी कंपनियों को भी होश आ गया। मामला था बाइक टैक्सी सर्विस का, जहां ऐप पर दिखाए गए किराए से ज्यादा पैसा वसूला गया। लेकिन इस युवक ने बात को यहीं नहीं छोड़ा और उपभोक्ता कोर्ट में केस ठोक दिया। फिर क्या था, जो फैसला आया उसने लाखों यूज़र्स को राहत देने का काम किया है।
बाइक टैक्सी किराया विवाद बना बड़ा मुद्दा
हैदराबाद के रहने वाले एक युवक ने एक मशहूर बाइक टैक्सी ऐप से अपनी यात्रा बुक की थी। ऐप पर जो अनुमानित किराया दिखाया गया था, असल में उससे कहीं ज़्यादा किराया वसूला गया। पहले तो युवक ने सोचा कि यह तकनीकी गड़बड़ी होगी, लेकिन जब उसने सर्विस प्रोवाइडर से बात की, तो संतोषजनक जवाब नहीं मिला। इसके बाद युवक ने सीधे उपभोक्ता फोरम का दरवाज़ा खटखटाया। कोर्ट में उसने पूरा स्क्रीनशॉट, भुगतान की रसीद और ऐप के प्राइस ब्रेकडाउन के सबूत पेश किए।
कोर्ट ने ग्राहक के पक्ष में सुनाया ऐतिहासिक फैसला
कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि ऐप द्वारा जो कीमत दिखलाई गई थी, उससे अधिक किराया वसूलना अनुचित व्यापार प्रथा के दायरे में आता है। उपभोक्ता कोर्ट ने कंपनी को ₹5000 का जुर्माना और ₹5000 हर्जाना देने का आदेश सुनाया। इस फैसले से यह साफ हो गया कि अब डिजिटल प्लेटफॉर्म भी उपभोक्ता कानून से ऊपर नहीं हैं, और ऐप पर जो किराया दिखता है, वो ही आखिरी होना चाहिए – इसमें कोई हेरफेर नहीं चलेगा।
ऑनलाइन सर्विस और उपभोक्ता अधिकार
यह फैसला उन सभी लोगों के लिए नज़ीर बनकर सामने आया है जो रोज़ाना ऐप आधारित सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं – खासकर बाइक टैक्सी जैसे प्लेटफॉर्म्स का। अक्सर कंपनियां “डायनामिक प्राइसिंग” या “सर्ज चार्ज” के नाम पर अतिरिक्त किराया वसूलती हैं, जो बाद में यूज़र के पल्ले नहीं पड़ता। लेकिन अब ग्राहक अगर जागरूक हो, तो वो इस तरह की चालबाज़ी का कानूनी तौर पर सामना कर सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई कंपनी तय किराए से ज़्यादा वसूलती है, तो ग्राहक को न्याय की पूरी उम्मीद होनी चाहिए।
बाइक टैक्सी यूज़र्स के लिए बड़ी राहत
इस फैसले के बाद लाखों बाइक टैक्सी यूज़र्स ने राहत की सांस ली है। खासकर छात्र, ऑफिस जाने वाले कर्मचारी और डेली कम्यूटर, जो दिन में कई बार इन सेवाओं का उपयोग करते हैं, अब ज्यादा चौकस हो गए हैं। लोग ऐप पर दिखाए गए किराए का स्क्रीनशॉट लेने लगे हैं ताकि भविष्य में कोई झंझट न हो। इससे बाइक टैक्सी कंपनियों पर भी नैतिक दबाव पड़ा है कि वो अपने प्राइसिंग सिस्टम को और पारदर्शी बनाएं।
गांव-कस्बे में भी बढ़ रहा बाइक टैक्सी का चलन
शहरों के साथ-साथ अब छोटे कस्बों और गांवों में भी बाइक टैक्सी सर्विस की मांग तेज़ी से बढ़ रही है। लोग कम किराए और तेज़ सुविधा के कारण इन ऐप्स का रुख कर रहे हैं। लेकिन जैसे-जैसे ये सेवाएं देहात तक पहुँच रही हैं, वैसे-वैसे शिकायतें भी बढ़ने लगी हैं। इसलिए इस तरह के फैसले उन जगहों के लिए भी बेहद अहम हैं, जहां लोग उपभोक्ता अधिकारों के बारे में कम जानते हैं। यह केस बता देता है कि अब ग्राहक सिर्फ सेवा लेने वाला नहीं, बल्कि कानूनन रूप से ताकतवर भी है।
कभी-कभी आम आदमी भी बना देता है कानून को यादगार
हैदराबाद के इस युवक ने जो साहस दिखाया है, वो किसी क्रांतिकारी से कम नहीं है। ये बात साबित हो गई है कि अगर ग्राहक जागरूक हो तो बड़ी-बड़ी कंपनियों को भी घुटनों पर लाया जा सकता है। इस फैसले के बाद अब ऐप आधारित कंपनियों को सोचना पड़ेगा कि वो कैसे अपनी सेवाओं को ज्यादा ईमानदार और यूज़र-फ्रेंडली बनाएं। अब ग्राहक चुप नहीं बैठेगा, और जो ज्यादा वसूलेगा, उसे कोर्ट में जवाब देना ही होगा। आने वाले समय में अगर आपसे भी ज्यादा किराया लिया जाए, तो समझ लीजिए – जवाब देने वाला कोई तो है!
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