सोचिए एक ऐसी कार जो 84 लाख की हो, उसे कोई मात्र 2.5 लाख में क्यों बेचेगा? दिल्ली में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने हर कार मालिक को हैरानी में डाल दिया है। राजधानी में पुराने वाहनों के लिए लागू हुए सख्त नियमों के चलते एक व्यक्ति को अपनी लग्ज़री Mercedes-Benz गाड़ी औने-पौने दाम पर बेचना पड़ा। अब यह चर्चा न सिर्फ दिल्ली-एनसीआर में, बल्कि पूरे देश में गर्म हो चुकी है कि आखिर 10 साल पुरानी गाड़ी बेचने की इतनी नौबत क्यों आ रही है।
पुरानी गाड़ियों पर बैन ने बढ़ाई मुसीबत
दिल्ली सरकार द्वारा तय किए गए नियमों के अनुसार राजधानी में 10 साल से पुरानी डीज़ल गाड़ियां और 15 साल से पुरानी पेट्रोल गाड़ियों का उपयोग प्रतिबंधित है। इसका सीधा असर उन गाड़ियों पर पड़ा है जो चाहे तो तकनीकी रूप से चलने लायक हैं, लेकिन कानूनी रूप से अब सड़क पर नहीं उतर सकतीं। ऐसे में वाहन मालिकों के सामने दो ही रास्ते बचे हैं – या तो गाड़ी को स्क्रैप करा दें, या बहुत सस्ते में बेच दें। इसी नियम के चक्कर में एक व्यक्ति को अपनी Mercedes-Benz जैसी लग्ज़री गाड़ी भी करीब-करीब कबाड़ के भाव बेचनी पड़ी।
Mercedes-Benz बेचनी पड़ी मात्र 2.5 लाख में
दिल्ली के एक कारोबारी ने कुछ साल पहले करीब 84 लाख रुपये खर्च कर एक शानदार Mercedes-Benz S-Class खरीदी थी। गाड़ी की हालत अब भी बिल्कुल फिट थी, लेकिन जब वह 10 साल की हो गई, तब उस पर नियम लागू हो गए और मालिक को उसे दिल्ली की सड़कों से हटाना पड़ा। चूंकि दिल्ली और एनसीआर में ऐसे वाहनों का रजिस्ट्रेशन अब ट्रांसफर नहीं हो सकता, इसलिए इसे बेचने के लिए भी ग्राहक नहीं मिल रहे थे। आखिरकार कारोबारी को अपनी शानदार कार मात्र 2.5 लाख रुपये में बेचनी पड़ी।
पुरानी कारों की रीसेल वैल्यू हुई ज़मीन पर
पुरानी कार बेचने वालों के लिए अब सबसे बड़ी मुश्किल यह हो गई है कि रजिस्ट्रेशन रद्द होने के बाद उसकी वैल्यू अचानक घट जाती है। खासकर अगर वो गाड़ी डीज़ल की हो और दिल्ली-एनसीआर में इस्तेमाल हो रही हो। ऐसा सिर्फ Mercedes-Benz जैसी लग्ज़री गाड़ियों के साथ ही नहीं हो रहा, बल्कि Fortuner, Audi, BMW, Skoda और यहां तक कि Innova जैसी गाड़ियों को भी लोग मजबूरी में बेहद सस्ते दामों में बेचने को मजबूर हैं। कई बार तो इन गाड़ियों को कबाड़ में बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
दिल्ली-एनसीआर में हालात और भी खराब
दिल्ली एनसीआर में इस तरह के नियम सख्ती से लागू हैं। यहां सड़क पर अगर 10 साल पुरानी डीज़ल गाड़ी मिलती है, तो वह जब्त हो सकती है या भारी जुर्माना भी लग सकता है। इसके चलते कई लोग अपनी गाड़ियों को स्क्रैप कराने के लिए मजबूर हो गए हैं। स्क्रैप का रेट वाहन की मेटल पर आधारित होता है, न कि उसके ब्रांड या कंडीशन पर। इसलिए कई बार करोड़ों की गाड़ियां भी स्क्रैप यार्ड में महज़ लोहे के दाम पर कटती हैं।
क्या करें ऐसे नियम में फंसी गाड़ी का मालिक?
अगर आपके पास भी कोई ऐसी डीज़ल या पेट्रोल गाड़ी है जो 10 या 15 साल की उम्र पार कर चुकी है, तो आपके पास कुछ सीमित विकल्प हैं। आप उसे किसी ऐसे राज्य में ट्रांसफर कर सकते हैं जहां ऐसे सख्त नियम न लागू हों। या फिर स्क्रैप पॉलिसी के तहत वाहन को स्क्रैप करवा सकते हैं और नई गाड़ी पर कुछ छूट पा सकते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में गाड़ी की पुरानी वैल्यू का मिलना लगभग नामुमकिन होता है।
लग्ज़री गाड़ियां भी अब नहीं बच पा रहीं
पहले तक माना जाता था कि महंगी गाड़ियों की देखभाल और वैल्यू ज्यादा होती है। लेकिन अब दिल्ली में Mercedes-Benz जैसी गाड़ियां भी कानून के आगे झुकने को मजबूर हैं। गाड़ी चाहे कितनी भी शानदार कंडीशन में क्यों न हो, अगर वह तय समय से पुरानी हो चुकी है, तो उसके लिए सड़क पर कोई जगह नहीं बची है। यह नियम पर्यावरण की दृष्टि से तो जरूरी है, लेकिन जिन लोगों ने करोड़ों खर्च कर अपनी लग्ज़री कार ली थी, उनके लिए यह बड़ा झटका साबित हो रहा है।
वाहनों के लिए आने वाला समय कैसा होगा
अब जब पर्यावरण नियमों को लेकर सरकारें सख्त हो रही हैं, तो ऑटोमोबाइल कंपनियां भी नई तकनीक में बदलाव कर रही हैं। इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मांग तेजी से बढ़ रही है और अब लोग ऐसे विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं जो भविष्य में नियमों की जद में न आएं। ऐसे में आने वाले समय में डीज़ल गाड़ियों का बाजार और भी संकुचित हो सकता है।
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